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सोचने दो और थोडा, सोचने दो और ॥ किस तरह से कम करे हम यंत्र सा यह शोर ॥ खा गया यह शब्द कोमल पी गया संगीत , अनसुना सा हो गया है जिंदगी का गीत , अधर सूने होठ गीले दिखते हर ओर , सोचने दो और ॥ सूर्य से कहते ना बनता दो वही तुम धूप , बादलो से भी छिना वह बादलो का रूप , पर कहे किससे कि है अन्याय यह तो घोर, सोचने दो और ॥
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